Saturday, November 27, 2010

मैं बेगुनाह हूँ यारों...!!!

यह मेरा वतन है
इसमें दरार न डालो यारों,
जिन डालों पर कभी झूले थे
उस दरख्त को न काटो यारो...!!!

ज़र्रे ज़र्रे से जो महक उठती है
उसे सांसों मे भर लेने दो यारों,
सपने अभी पूरे कहाँ हुए हैं
थोडा और सो लेने दो यारों...!!!

कई यादें जुडी हैं उस आँगन से
अभी मेलों को चलने दो यारों,
यह जो नीला शामियाना है
उसे खून से धूमिल न करो यारों...!!!

बीज अभी ही तो बोए थे
फसल तो पक जाने दो यारों,
अभी चलना सीखा ही है
मुझे गिरने न दो यारों...!!!

पाने को जहाँ और भी हैं
कदम थमने न दो यारों,
आस्मां अभी और भी हैं
उड़ान रुकने न दो यारों...!!!

संवेदनाये मरने लगी हैं
इस शोर को ज़रा कम करो यारों,
आसूं तो पहले ही बह चुके हैं
अब खून तो बहने न दो यारों...!!!

अब भी जीने की चाहत है
जी भर के जी लेने दो यारों,
अन्दर ही अन्दर घुट के थक चुका हूँ
अब तो खुल के हस लेने दो यारों...!!!

गुनाह तो सियासतें करती हैं...
मैं बेगुनाह हूँ यारों...
मैं बेगुनाह हूँ यारों...!!!